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लेखनी प्रतियोगिता -21-Jan-2022

" व्यथा नारी की"

नि:शब्द रुदन, निष्ठुर मन
कुछ तलाश करते
अध-जल अश्रु से भरे दो नयन
कटाक्ष रूपी बाणों से 
विच्छेदित करते है
मेरा तन और मन
निर्मल प्रेम अथाह
सबका दुख मैं हरती हूं
वात्सल्य मयी, करूणा मयी हां नारी हूं , मैं नारी हूं, मैं नारी

रूह से ,परछाई से
इस जगत की हर कठिनाई से
प्रेम से तो कभी घर्ण से
पूछती रहती यही प्रश्न
क्यों धूमिल कर रहा अस्तित्व  स्त्री का आज पुरुष
क्या ज्ञात नहीं उसे कि
मैं ही जननी,मैं ही भार्या
मैं ही भगनी ,मैं ही नंदिनी 
मैं ही सृष्टि की प्रजनन शक्ति
हाँ नारी हूं, मैं नारी हूं, मैं नारी

 यह कैसी है विडंबना 
क्यों जन्म लेना दुहिता का 
हो जाता विषय चिंता का
कहने को नारी के दो आलय
एक पिता,एक पति का निलय
वास्तव में तो दोनों ही पराय
मेरा अपना क्या है? बस
कर्तव्य निष्ठा से बंधे हुए
सपनो को नैनो में लिए हुए
मुस्कान होटों पे बिखेरे हुए
दर्द हृदय में लिए हुए
पहचान बनाई है मैने
हाँं नारी हूं, मैं नारी हूं , मैं नारी

असीम ममता की धारा
स्नेह ,प्रेम जग का सारा
बटोरे अपने आंचल में
सहस्त्र झरनों का जल सारा
अचंभित-सी रह जाती हूं
देख दुर्दशा नारी की
पर क्यों भूल जाते है
दुर्गा भी में हूं,शक्ति भी में हूं
अपने पे अा जाऊं तो
प्रलय कारी, विनाश कारी
प्रचण्ड वृष्टि भी मैं हूं
क्या कभी समाप्त हो पाएगी
ये व्यथा मेरी
हाँ नारी हूं, मैं नारी हूं, मैं नारी

श्वेता दूहन देशवाल मुरादाबाद उत्तर प्रदेश 

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8 Comments

Shrishti pandey

22-Jan-2022 03:28 PM

Nice

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Punam verma

22-Jan-2022 09:28 AM

Very nice

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Sudhanshu pabdey

22-Jan-2022 01:38 AM

Very beautiful 👌

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